हमारा देश कृषि प्रधान देश है, देश की लगभग 65 से 70 प्रतिशत् आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से खेती पर आधारित है। मृदा मे लगातार फसले उगाने से मृदा सख्त एवं कठोर हो जाने से जल धारण क्षमता एवं भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती जाती है तथा फसलों में विभिन्न प्रकार के रोग, कीट, बीमारियों एवं खरपतवारों की समस्या दिन प्रति दिन बढ़ती जाती है। जिससे फसलोत्पादन में कमी एवं लगातार जल स्तर में गिरावट देखी जा रही है।
कृषि विज्ञान केन्द्र जबलपुर की प्रभारी एवं वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ.रश्मि शुक्ला ने बताया है कि समस्याओं से निजात पाने के लिये ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई किसानों के लिये एक वरदान के रुप में साबित हो सकती है। मई-जून के माह में मिट्टी पलटने बाले हल जैसे मोल्ड़ बोर्ड प्लाऊ, टर्न रेस्ट प्लाऊ या रिर्वस विल मोल्ड़ बोर्ड प्लाऊ के द्वारा तीन वर्ष मे कम से कम एक बार 20 से.मी. से अधिक गहरी ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई अवश्य करनी चाहिए।
ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करने के लाभ डॉ. शुक्ला ने बताया गहरी जुताई करने से भूमि की ऊपरी कठोर परत टूट जाती है जिससे मृदा में वर्षा जल धीरे-धीरे रिस-रिस कर जमीन के अंदर चला जाता है तथा वर्षा जल का रुकाव जमीन में अत्यधिक होने के कारण मृदा में जल भरण क्षमता एवं जल स्तर में वृद्धि हो जाती है।
मृदा की भौतिक संरचना में सुधार होता है
मृदा में हवा का आवागमन बढ़ जाता है एवं सूक्ष्म जीवों की संख्या में भी वृद्धि हो जाती है, तथा जैविक पदार्थो का विघटन सर्वाधिक होता है, जिससे भूमि कि उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। मृदा मे वर्षा जल के सोखने की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे वायुमण्डल की नाइट्रोजन जल में धुल कर मृदा में चली जाती है, जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हो जाती है। जमीन के अंदर छिपे हुए कीटों के अंडे, प्युपा आदि जमीन के ऊपर आ जाते है और तेज धूप के कारण मर जाते है।
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. रश्मि शुक्ला कहती हैं कि खरपतवारों के बीज एवं रोग फैलाने वाली कवक, बैक्टीरिया एवं वायरस भी तेज धूप के कारण मर जाते है, जिससे अगली फसल में रोग, कीट एवं खरपतवारों की समस्या कम होती है।
ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई खेत के ढ़ाल की विपरीत दिशा में करने से मृदा एवं जल कटाव में कमी एवं वर्षा जल बहकर नुकसान हो जाने से भी बच जाता है। ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई करने से फसल उत्पादन में 10-20 प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाती है।